दरअसल करवा चौथ (Karva Chauth) का त्योहार दीपावली (Diwali) से नौ दिन पहले कार्तिक मास की चतुर्थी को मनाया जाता है ।
करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूरे दिन भूखे-प्यासे रहकर व्रत रखती हैं। इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के बाद करवा चौथ की कथा शाम को सुनी जाती है।
फिर रात को चांद को अर्घ्य देने के बाद व्रत संपन्न होता है। छलनी में पति का मुंह देखकर उसके हाथ से पानी पीकर व कुछ खाकर व्रत पूरा माना जाता है ।
जिन महिलाओं के पति बाहर होते हैं वे आजकल फोन से बात करके व्रत तोड़ती हैं ।
महिलाएं हफ्तों पहले से व्रत की तैयारियां शुरू कर देती हैं बाजार से शॉपिंग , मेंहदी और पूरा मेकअप कर साज श्रृंगार के साथ बिल्कुल नई दुल्हन नजर आती हैं।
करवाचौथ :
भारतीय सुहागिनों का एक ऐसा व्रत जो पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है , आस्था और भावनाओं की एक बहुत बड़ी मिसाल है करवाचौथ ।
करवाचौथ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।
यह पर्व सुहागिन स्त्रियां मनाती हैं किंतु नए चलन में देखा जा रहा है कि शादी तय होने पर कुछ लड़कियां भी ये व्रत करने लगी हैं तथा नए पीढ़ी के पुरुष वर्ग भी अपनी पत्नियों का साथ देने व्रत करते देखे जाते हैं ।
यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है।
अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।
करवाचौथ की प्रचलित कहानी :-
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे।
एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। भाई जब घर आए तो देखा करवा बहुत व्याकुल थी। उसने बताया कि उसका आज करवाचौथ का निर्जल व्रत है।
वह चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही भोजन कर सकती है। चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को बहन की हालत देखी नहीं गई और वह दूर वरगद के पेड़ पर दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख देता है।
यह दीपक दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चांद निकल आया हो । वह बहन को बताता है कि चांद निकल आया है।
करवा चांद को देखती है, अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा वह जैसे ही मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरे टुकड़े में बाल निकल आता है। जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार मिलता है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई बताती हैं कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवाचौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं।
करवा निश्चय करती है कि पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाएगी। वह पूरे साल पति के शव के पास बैठी रहती है। एक साल बाद फिर चौथ का व्रत आया तो करवा की भाभियां उससे मिलने आईं।
ननद की दशा देखकर वे सभी बहुत दुखी हुईं और उससे कहा कि तुम्हारा सुहाग चौथ माता ने लिया है वही तुम्हें सुहाग देंगी। आज चौथ का व्रत है और सभी के घरों में चौथ माता आएंगी। जब माता आएं तो तुम उनके पांव पकड़ लेना। उनसे क्षमा याचना करना।
जब चौथ माता आईं तो करवा ने उनके पांव पकड़ लिए। अपने सुहाग को जीवित करने की याचना करने लगी। चौथ माता को दया आ गई और उन्होंने अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से निकला अमृत उसके पति के मुंह में डाल दिया।
करवा का पति तुरंत श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार चौथ माता के आशीर्वाद से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।
दीपावली Deepawali (दिवाली Diwali)
गोवर्धन पूजा Goverdhan Pooja
नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली) Narak Chaturdashi
छठ पूजा Chhath Pooja
धनतेरस Dhanteras
करवाचौथ Karavachauth
नवरात्रि NavRatri
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