Posted as Received on whatsapp.
Story dil se , Unknown writers
रात 8 बजे का समय रहा होगा, एक लड़का एक जूतों की दुकान में आता है. गांव का रहने वाला था पर तेज था ,उसका बोलने का लहज़ा गाव वालो की तरह का था, पर बहुत ठहरा हुआ लग रहा था. लगभग 22 वर्ष का रहा होगा .
दुकानदार की पहली नज़र पैरों पर ही जाती है. उसके पैर में लेदर के शूज थे,सही से पाॅलीश किये हुये थे
दुकानदार - क्या सेवा करू ?
लड़का - मेरी माँ के लिये चप्पल चाहिये,किंतु टिकाऊ होनी चाहिये
दुकानदार - वे आई है क्या ?उनके पैर का नाप ?"
लड़के ने अपना बटुआ बाहर निकाला, उसको चार बार फोल्ड किया एक कागज़ पर पेन से आऊटलाईन बनाई दोनों पैर की.
दुकादार - अरे मुझे तो नाप के लिये नम्बर चाहिये था.
वह लड़का ऐसा बोला मानो कोई बाँध फूट गया हो "क्या नाप बताऊ साहब?
मेरी माँ की जिंदगी बीत गई, पैरों में कभी चप्पलच नही पहनी, माँ मेरी मजदूर है, काँटे झाड़ी में भी जानवरो जैसे मेहनत करकर के मुझे पढ़ाया , पढ़कर,अब नोकरी लगी. आज पहली तनख़्वाह मिली दिवाली पर घर जा रहा हूं, तो सोचा माँ के लिए क्या ले जाऊ ? तो मन मे आया कि अपनी पहली तनख़्वाह से माँ के लिये चप्पल लेकर जाऊँ ."
दुकानदार ने अच्छी टिकाऊ चप्पल दिखाई जिसकी आठ सौ रुपये कीमत थी .
"चलेगी क्या "वह उसके लिये तैयार था.
दुकानदार ने सहज ही पूछ लिया; "कितनी तनख़्वाह है तेरी ?"
"अभी तो बारह हजार,रहना - खाना मिलाकर सात-आठ हजार खर्च हो जाते है यहाँ, और दो - तीन हजार माँ को भेज देता हूँ."
अरे फिर आठ सौ रूपये कहीं ज्यादा तो नहीं .....तो बीच में ही काटते हुए बोला .... नही कुछ नही होता
दुकानदार ने बाॅक्स पेक कर दिया उसने पैसे दिये.
ख़ुशी ख़ुशी वह बाहर निकला.
चप्पल जैसी चीज की, कोई किसी को इतनी महंगी भेंट नही दे सकता. ......... पर दुकानदार ने उसे कहा- "थोड़ा रुको! दुकानदार ने एक और बाॅक्स उसके हाथ में दिया. "यह चप्पल माँ को तेरे इस भाई की ओर से गिफ्ट । माँ से कहना पहली ख़राब हो जाय तो दूसरी पहन लेना नँगे पैर नही घूमना,और इसे लेने से मना मत करना."
दुकानदार की और उसकी दोनों की आँखे भर आईं.
दुकानदार ने पूछा "क्या नाम है तेरी माँ का?" .
"लक्ष्मी "उसने उत्तर दिया.
दुकानदार ने एकदम से दूसरी मांग करते हुए कहा, उन्हें "मेरा प्रणाम कहना, और क्या मुझे एक चीज़ दोगे ?
वह पेपर जिस पर तुमने पैरों की आऊटलाईन बनाई थी,वही पेपर मुझे चाहिये.
वह कागज़ दुकानदार के हाथ मे देकर ख़ुशी ख़ुशी चला गया ।
वह फोल्ड वाला कागज़ लेकर दुकानदार ने अपनी दुकान के पूजा घर में रख़ा.
दुकान के पूजाघर में कागज़ को रखते हुये दुकानदार के बच्चों ने देख लिया था और उन्होंने पूछ लिया कि ये क्या है पापा ?"
दुकानदार ने लम्बी साँस लेकर अपने बच्चों से बोला;
"लक्ष्मीजी के पैर " है बेटा
एक सच्चे भक्त ने उसे बनाया है . इससे धंधे में बरकत आती है."
बच्चों ने, दुकानदार ने और सभी ने मन से उन पैरों को प्रणाम किया......
सभी माताओं को सादर समर्पित....
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment