प्रदेश प्रशासन ने कर्फ्यू लगा दिया है व 10 जिलों में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं हैं ।
बताया जा रहा है कि यह विरोध असम समझौता खत्म होने के कारण है आइए जानते हैं आखिर क्या है ये
असम समझौता
15 अगस्त 1985 को भारत सरकार और असम नेताओं के बीच हुआ ये समझौता यहां के लोगों की सामाजिक-सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को सुरक्षा प्रदान करता है ।
असम समझौते (Assam Accord) में कहा गया है कि 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए विदेशियों की पहचान कर उन्हें देश ने बाहर निकाला जाए ।
जबकि, दूसरे राज्यों के लिए 1951 के बाद असम में आए विदेशियों की पहचान कर उन्हें देश ने बाहर निकाला जाए ।
कई साल के लंबे विरोध और कई लोगों की कुर्बानी के बाद हुए इस समझौते के मुताबिक राज्य में वही प्रवासी वैध हो सकता है जो 25 मार्च 1971 तक आया हो ।
इसके बाद जो भी विदेशी राज्य में आया है उसे एनआरसी लागू कर बाहर निकाला जाएगा ऐसा इस समझौते में कहा गया ।
लेकिन अब नए नागरिकता संशोधन विधेयक में इसकी तारीख बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 निर्धारित की गई है जिससे राज्य में जिनको नागरिकता नहीं मिलनी थी उनको भी मिल जाएगी ।
लोगों का कहना है कि पिछले 35 सालों से एनआरसी लागू न करने और अब नागरिकता संशोधन बिल में समय सीमा बढ़ा देने से अवैध शरणार्थियों को नागरिकता मिल जाएगी।
जबकि 31 अगस्त को जब यहां एनआरसी पर काम शुरू हुआ तो 19 लाख लोग इससे बाहर हो गए।
नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill)
नागरिक संशोधन बिल के कानून का रूप लेने से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और आस-पास के देशों में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए वहाँ के अल्पसंख्यक ( हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध ) धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी ।
लोगों का मानना है कि नई समय सीमा से असम समझौते का उल्लघंन तो हो ही रहा है। साथ ही उनकी संस्कृति, सभ्यता और पहचान पर भी संकट मंडरा रहा है।
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