प्रदूषण न बन जाए मौत

बढ़ते प्रदूषण (Pollution) और ग्‍लोबल वार्मिंग का खतरा आजकल आम बात है । लेकिन हम इसको लेकर कितना संजीदा हैं ये सोचने का विषय है । भारत की राजधानी दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण (Pollution) की वजह से आज हर किसी का ध्यान उसी ओर है । लेकिन क्या सिर्फ दिल्ली में ही प्रदूषण फैला हुआ है ? ऐसा कहना बहुत गलत होगा भारत के ही हरियाणा में दिल्ली से अधिक प्रदूषण (Pollution) स्तर नोट किया गया है ।

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में भी प्रदूषण (Pollution) का स्तर कुछ कम नहीं लेकिन ये राजधानी नहीं तो इधर ऐसे शहरों पर कोई सवाल भी नहीं उठाता।

बढ़ते प्रदूषण (Pollution) और ग्‍लोबल वर्मिंग से धरती को बचाने के लिए दुनिया के कई देशों में लोगों ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए जन आंदोलन शुरू कर दिए है जिसमें मांग की जा रही है कि सरकार शून्य कार्बन उत्सर्जन के लिए कार्य करे ।

पर्यावरण और उससे जुड़े मसलों पर जैसे जैसे लोग जागरूक हो रहे हैं, उन्हें समझ आ रहा है कि अगर अभी नहीं चेते तो हमारी पीढ़ियों का भविष्य बीमारियों से घिरा होगा। और दुनियाँ में मरने वाला हर दूसरा व्यक्ति प्रदूषण (Pollution) की वजह से मरेगा ।

अगर हम समय रहते नहीं चेते तो हमारे लिए न तो शुद्ध हवा होगी, न स्वच्छ पानी , और न ही स्वच्छ खेती से उपलब्ध खाना। मौसम इतना असंतुलित हो जाएगा कि हम सर्दी गर्मी और बारिश के सीजन भूल जाएँगे और इस बदलते माहौल को हमारा शरीर सह नहीं सकेगा।

कोर्ट से क्‍लाइमेट इमरजेंसी घोषित करने की मांग

भारत में सुप्रीम कोर्ट में जलवायु आपातकाल घोषित करने को लेकर एक याचिका डाली गई है। याचिका में मांग की गई है कि 2025 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन शून्य स्तर पर लाना सरकार सुनिश्चित करे।

अब तक दुनिया के कई देशों की सरकारें जलवायु आपातकाल को कालू कर चुकी है।

दिसंबर 2016 को ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में डेयरबिन शहर में आपातकाल लागू किया गया।

मई 2019 को ब्रिटेन की संसद ने जलवायु आपातकाल घोषित किया।

जून 2019 में वेटिकन सिटी में इमरजेंसी आपातकाल घोषित किया।

आयरलैंड, पुर्तगाल, कनाडा, फ्रांस, अर्जेंटीना, स्पेन, आस्ट्रिया सहित कई देशों ने भी इसे लागू किया है।

भारत की स्थिति और उपाय के कदम

कोयले की खपत (उत्पादन व आयात) करने वाला भारत विश्व का दूसरा बड़ा देश है। वर्ष 2000 के मुकाबले कोयला उत्पादन में तीन गुणा की बढोत्तरी हुई है। भारत में 80 प्रतिशत बिजली उत्पादन भी कोयले से किया जाता है। कोयला आधारित उध्योग को अक्षय उर्जा में परिवर्तित करना होगा तथा ऊर्जा की खपत सरकारी व निजी स्तर पर कैसे कम हो इसके लिए सख्त नियम कायदे बनाने होंगे।

सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि एक परिवार अधिकतम कितना कार्बन उत्सर्जन कर सकता है। इसी आधार पर अपनी नीतियों को अमल में लाना होगा। भारत द्वारा इंटरनेशनल सोलर एलाइंस के गठन में अग्रणी भूमिका निभाना व उस ओर अपने कदमों को मोड़ना भविष्य के लिए एक बेहतर कदम है।

पड़ोसियों से सीखना होगा हमें

भारत को अपने पडोसी चीन से सीख लेने की आवश्यकता है कुछ ही साल पहले चीन की राजधानी बीजिंग की हालात बहुत ही ख़राब थी जहाँ प्रदूषण के कारण दिन में भी सूर्य की रौशनी नजर नहीं आती थी । लेकिन चीन ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए वातावरण को बदलकर रख दिया है  ।वहां हरियाली के प्रबंध करने के साथ साथ सरकार ने एयर प्यूरीफायर बनाए हुए हैं जो हवा का शोधन लगातार करते रहते हैं ।

प्रकृति प्रेम हमें भूटान से भी सीखना चाहिए। यह दुनिया का सबसे हरियाली युक्त देश देश है।  भूटान का क्षेत्रफल केरल प्रदेश के बराबर है। इस देश का 70 फीसद हिस्सा हरियाली से आच्छादित है। करीब तीन चौथाई हिस्सा कार्बन डाईऑक्साइड के सोखने के काम में आता है।

भूटान सकल राष्ट्रीय खुशहाली सूचकांक के आधार पर अपनी नीतियां निर्धारित करते हैं। चार स्तंभों पर खड़े इस सूचकांक में एक स्तंभ पर्यावरण संरक्षण भी है। भूटान अकेला देश है जिसने अपने वनों को बचाने के लिए संवैधानिक प्रावधान कर रखा है। जिसके अनुसार किसी भी समय भूटान के क्षेत्रफल का 60 फीसद हिस्सा वनों से आच्छादित होना चाहिए। देश ने इमारती लकड़ी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है। समस्त बिजली जरूरतें पनबिजली स्रोतों से पूरी होती हैं। ज्यादा बिजली बनाकर यह पड़ोसी देशों को बेचता है

भारत की स्थिति

जलवायु परिवर्तन को लेकर लक्ष्य तय करने के मामले में भारत भी अच्छा कार्य कर रहा है मगर स्तर बढ़ाने की आवश्यकता है । अगर हम वन आच्छादन क्षेत्र बढ़ाने के लक्ष्य को प्राप्त कर लें और कोयला आधारित बिजली प्लांटों का निर्माण बंद कर दें तो हम पर्यावरण में सुधार लाने में कामयाब होंगे।

पेरिस समझौते के अनुसार भारत ने 2005 की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन की तीव्रता को 30 से 35 प्रतिशत कम करने की प्रतिबद्धता जताई है। 2030 तक अपनी कुल बिजली क्षमता के 40 प्रतिशत को अक्षय ऊर्जा व परमाणु ऊर्जा में तब्दील करना भी भारत का लक्ष्य है जोकि एक बेहतर कदम है।

हम उन देशों में शामिल हैं जो जलवायु परिवर्तन पर सबसे अधिक गंभीरता से काम कर रहे हैं। भारत औपचारिक रूप से आपातकाल घोषित किए बिना ऐसा कर रहा है।

जलवायु समस्या से जिम्मेदारीपूर्वक निपटने की जरूरत है। किसी व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला कार्बन उत्सर्जन जितना है वह उसका कार्बन फुटप्रिंट कहलाता है। हमें इसमें ही कमी लानी है। आबादी अधिक होने के कारण कार्बन उत्सर्जन में भारत की कुल हिस्सेदारी अधिक है। हमें इसे और कम करने की आवश्यकता है।

 

 

No comments:

Post a Comment