एक जगह आधा किलोमीटर के दायरे में तीन सार्वजनिक क्षेत्र की बैंक थीं और एक निजी बैंक ।
एक ग्राहक दीनदयाल जी के तीनों ही सरकारी बैंकों में खाते थे और वो वहाँ लेनदेन करते रहते थे । पास पास होने के कारण तीनों ही बैंकों का स्टाफ आपस में मिलते रहते थे ।
एक बार जब इन बैंकों के स्टाफ वाले बात कर रहे थे तो दीनदयाल जी का जिक्र आया । तब पता चला कि दीन दयाल जी हर बैंक में एक ही बात बोलते हैं "सरकारी बैंक वाले सही से काम नहीं करते प्राइवेट में जाकर देखो कितने प्यार से बोलते हैं कितनी अच्छी सर्विस देते हैं , यहाँ तो लाइन में लगे रहो "
अब सभी जान चुके थे कि वे हर बैंक में हर बार यही बात दोहराते हैं तो अबकी बार बैंक कर्मचारियों ने टोकने की सोच ली । लेकिन कहना क्या चाहिए ? सब ने आपस मे फैसला कर लिया ।
इस बार जब वे काम को आए तो फिर से वही सब बोले, पर इस बार कर्मचारी ने उनको पूछा " सर एक बात बताइए अगर बाजार में चार कपड़े की दुकान हैं और आप जानते हों कि एक दुकान सबसे बेहतर और अच्छे कपड़े देती है और उसका दुकानदार भी अच्छा है तो आप चार में से किस दुकान पर जाएँगे ? और क्या कभी उन तीन बेकार दुकानों पर जाएँगे ? "
दीनदयाल जी तपाक से बोले " बिल्कुल नहीं जाऊंगा बेकार दुकानों पर सिर्फ अच्छी दुकान से सुविधा लूँगा "
इतना सुनना था कि पास खड़े अन्य सभी ग्राहक जोर से हंस पड़े । दीनदयाल जी के साथ यही वाकया तीनों बैंको में हुआ ।
दीनदयाल जी समझ चुके थे कि उन्हें क्या समझाया जा रहा है
इस पर वे निजी बैंक में खाता खोलने निकल पड़े ।
लेकिन उन्होंने पहले थोड़ी देर उस निजी बैंक में बैठकर उसका तरीका देखना और समझना चाहा ।
उन्होंने ध्यान दिया कि जितनी देर वे निजी बैंक में बैठे उनका कोई मिलने वाला नहीं आया, और कोई लाइन भी नहीं थी विजनिस मैन लोग टोकन लेते चुपचाप कुर्सी पर आकर बैठते और अपने नंबर का इंतजार करते । जब उनका नंबर आता तो अकेला आदमी काउंटर पर जाकर काम करा लेता । मतलब यहाँ भीड़ वाले कम पढ़े लिखे लोग तो थे ही नही।
वे समझ गए थे कि सभी आम जन के खाते सरकारी बैंकों में होने से वहाँ लाइन लगती है और काम मे देरी होती है , उनके किसी भी मिलने वाले का खाता भी निजी बैंक में नहीं था सिवाय उन लोगों के जो बिजनिस करते थे ।
एक घण्टे बैठने पर भी एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं आया जो कहे जरा हमारी स्लिप भरवा दो हमें भरना नहीं आता ,या जो कहे अँगूठा लगाना है ।
फिर दीनदयाल जी का नंबर आया वे काउंटर पर पहुँचे और खाते के बारे में जानकारी ली , सब ठीक था मगर जब पेनाल्टी और चार्जेज की रेट देखी तो सामने बैठी प्यार से बात कर रही रिलेशनशिप मैनेजर को मैं घर से फॉर्म भरकर लाता हूँ कहकर बैंक से निकल लिए ।
अब दीनदयाल जी ने अन्य चीजों पर गौर किया जैसे निजी बैंक देहात में हैं ही नहीं । गरीबों और किसानों को ज्यादातर सभी सुविधाएं सार्वजनिक बैंक ही दे रहे हैं । आम जन के 90 % खाते इन्ही बैंक में हैं । निजी बैंक पर आम जन का भरोसा नहीं है ।
इस सबके बाद आज भी सालों बाद दीनदयाल जी का खाता सिर्फ उन्हीं तीन सार्वजनिक क्षेत्र की बैंक में ही है पर अब वे गलत बयानबाजी न करके अपने काम को आराम से करवाते हैं और सभी कर्मचारियों से उनके अच्छे संबंध बन चुके हैं ।
-- सुधीर कुमार शर्मा
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