भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीतियों की समीक्षा के दौरान इस्तेमाल किए गए शब्द CRR और SLR क्या होते हैं आइए समझते हैं :-
सीआरआर Cash Reserve Ratio or CRR
देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत हर एक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है ।
इसे ही कैश रिजर्व रेशियो (CRR) या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं ।
RBI द्वारा सीआरआर बढ़ाए जाने पर बैंकों को ज़्यादा हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है और उनके पास नकदी कम रह जाती है ।
इसी के विपरीत बाज़ार में नकदी बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक सीआरआर को घटा देता है ।
इससे आप समझ सकते हैं कि रिजर्व बैंक द्वारा सीआरआर में बदलाव तभी किया जाता है, जब बाज़ार में नकदी की तरलता पर कंट्रोल करने की जरूरत अधिक हो ।
ऐसा इसलिए क्योंकि रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बदलाव की तुलना में सीआरआर में किए गए बदलाव से बाज़ार पर असर ज़्यादा समय में पड़ता है।
एसएलआर SLR
कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है ।
आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बगैर नकदी की तरलता कम करना चाहता है तो वह सीआरआर बढ़ा देता है, इससे बैंकों के पास लोन देने के लिए कम रकम बचती है ।
RBI नकदी की तरलता को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है ।
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