जब भी भारतीय रिजर्व बैंक आर्थिक समीक्षा यानि कि क्रेटिड पॉलिसी पर बैठक करता है तब रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट जैसे शब्द सुनने में आते हैं ।
लेकिन कई लोग इन शब्दों के मतलब नहीं जानते हैं ।
तो आइए रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की आर्थिक समीक्षा नीतियों से जुड़े इन शब्दों के बारे में जानिए ।
रेपो रेट
रेपो रेट वह व्याज दर होती है जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है ।
जिसका उपयोग बैंक ग्राहकों को ऋण देने में करते हैं ।
रेपो रेट कम होने से बैंक को कम व्याज पर पैसा मिलता है जिससे बैंक ग्राहकों को लोन सस्ते व्याज दर पर दे पाते हैं ।
और फिर होम लोन, व्हीकल लोन आदि की EMI कम हो जाती हैं ।
रेपो रेट में कमी या बढ़ाने का फैसला रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा बैठक में किया जाता है ।
इसीलिए जब भी RBI की समीक्षा बैठक होती है अभी आर्थिक क्षेत्र व शेयर बाजार की नजर इस पर रहती है ।
रिवर्स रेपो रेट
इसके नाम से ही साफ पता लगता है कि यह रेपो रेट से बिल्कुल उलट होता है ।
यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है ।
रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है।
जब कभी बाजार में बहुत ज्यादा नकदी होती है तब आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है जिससेबैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम रिजर्व बैंक के पास जमा कराती हैं । जिससे नकदी वापस रिजर्व बैंक पर पहुँच जाती है ।
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