युद्ध के दौरान यदि कोई सैनिक दूसरे देश की सीमा के अंदर पकड़ा जाता है तो उस पर किस तरह कार्यवाही की जाती है ?
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद युद्ध के दौरान पकड़े गए सैनिकों को लेकर एक संधि की गई जिसे जिनेवा समझौता भी कहा जाता है ।
युद्धबंदी (POW) prisoner of war को लेकर कई नियम बनाए गए जिसे हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों को मानना होता है ।
जिनेवा सम्मेलनों में चार संधियां और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल (मसौदे) शामिल हैं जो युद्ध के मानवीय उपचार के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के मानकों को स्थापित करते हैं।
मानवता को बरकरार रखने के लिए पहली संधि 1864 में हुई थी। इसके बाद दूसरी और तीसरी संधि 1906 और तीसरी 1929 में हुई ।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में 194 देशों ने मिलकर चौथी संधि पर हस्ताक्षर किए ।
चौथे जिनेवा सम्मेलन 1949 के अनुच्छेदों में बड़े पैमाने पर कैदियों के युद्धकालीन बुनियादी अधिकारों को परिभाषित किया गया ।
युद्ध के दौरान भी मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए जेनेवा समझौता हुआ था। इसमें युद्धबंदियों के अधिकार तय किये गये हैं।
उसके खिलाफ मुकदमा भी इन्हीं नियमों के तहत चलाया जा सकता है। युद्धबंदी को लौटाना भी होता है।
जेनेवा समझौते के तहत किसी युद्धबंदी के साथ अमानवीय बर्ताव नहीं किया जा सकता है।
युद्ध बंदी को डराया-धमकाया नहीं जा सकता है। उसे किसी तरह से अपमानित नहीं किया जा सकता है।
1971 की लड़ाई में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को भारत ने युद्धबंदी बना लिया था। जिन्हें बाद में सुरक्षित छोड़ दिया गया था।
कारगिल युद्ध के दौरान फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता पाकिस्तान में उतरे और पाक सेना द्वारा उन्हें पकड़ने के बाद वापस आए थे ।
जिनेवा संधि के तहत युद्धबंदी से कुछ पूछने के लिए उसके साथ जबरदस्ती नहीं की जा सकती। उनके खिलाफ धमकी या दबाव का इस्तेमाल नहीं हो सकता।
पर्याप्त खाने और पानी का इंतजाम करना उन्हें बंधक रखने वालों की जिम्मेदारी होगी।
साथ ही सैनिकों को कानूनी सुविधा भी मुहैया करानी होगी। ज
इस संधि के तहत घायल सैनिक की उचित देखरेख की जाती है ।
किसी देश का सैनिक जैसे ही पकड़ा जाता है उस पर ये संधि लागू होती है ।
युद्धबंदी की जाति, धर्म, जन्म आदि बातों के बारे में नहीं पूछा जाता ।
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