यादों के झरोखे से :-
ये क्या मैं भागम भाग दौड़े जा रहा हूँ , कॉलेज पहुँचने की बहुत जल्दी है ,
हाथ में एक एग्जाम बोर्ड और पेन पेंसिल की एक डिब्बी , जी हाँ आज तो बोर्ड का पेपर है
और ये क्या रास्ते मे जिस टेम्पो से बैठे वो पंचर ।
अब तो पैदल ही रेस लगा ली कॉलेज नजदीक ही है , और पहुंच भी गया पर चौकीदार अंदर नहीं घुसने दे रहा
पेपर चालू हो चुका , शायद पाँच मिनट लेट हो गया साँसे तेज हुई जा रही हैं और फिर अचानक से आँख खुल गई ।
थैंक गॉड ये एक सपना था ।
आँखों से नींद ही गायब थी , और आँख लगती भी तो एक ही खौफनाक सपना आता
जी हाँ बात है जब बोर्ड के एग्जाम हुआ करते थे कोशिश पूरी होती थी ज्यादा से ज्यादा पढ़ें पर नींद आने लगती थी ,
जब सोने को जाओ तो नींद नहीं ।
बड़ा ही अजीब सा चक्कर था , नींद आ भी जाए तो बस कभी एग्जाम में लेट हो गए , कभी पेपर में कुछ आ नहीं रहा और कभी तो सीधा रिजल्ट वाले दिन का सपना न्यूज़ पेपर में अपना रोल नंबर नहीं मिलता था ।
जी हाँ उस समय रिजल्ट का अलग से न्यूज़ पेपर छपता था ।
अफसोस तो होता था कि यार क्लास में चुनिंदा बच्चों के जैसे होशियार की लाइन में सर जी सेलेक्ट करते हैं पर ये एग्जाम में मार्क्स क्यों नहीं आते ?
तो भाई वजह भी साफ थी होशियारी गई भाड़ में जब हम लिखें उसे बस खुदा ही पढ़े तो कॉपी जाँचने वाला कोई भगवान थोड़े ही है ,
जब साथ के छात्र काम को कॉपी माँगते तो उन्हें ही राइटिंग समझ नहीं आती ।
वो लाइफ भी बड़ी अजीब थी सुबह जल्दी जागो और मैथ साइंस के ट्यूशन के लिए भाग लो ,
अब अंग्रेजी भी पढ़नी है पर वो सर वहाँ से दूर रहते हैं ,तो दोस्त की साइकिल खुद चलाओ दोस्त को बिठाओ और रोड़ पर जैसे साइकिल दौड़ हो रही हो ।
दो ट्यूशन के बाद कॉलेज जहाँ पढ़ाई बढ़ाई सिर्फ नाम की पर फिर भी हाजिरी की फिक्र तो होती ही थी , तो जाना भी पड़ता था ।
खैर वो दिन तो काफी पहले बीत चुके
फिर इतने समय के बाद भी ये कभी एग्जाम छूटना कभी पेपर गलत हो जाना आदि आदि सपने कब तक पीछा करते रहेंगे ,
अक्सर कर ये रिपीट होते ही रहते हैं बस क्लास चेंज करते हैं और तरीका भी ।
चलिए आज इतना ही
आगे जिक्र करेंगे उन दिनों का जब ग्रेजुएशन के लिए बड़े शहर जाना होता था - वो MST वाले दिन
...... क्रमशः
..वो सुहानी यादें 1 पढ़ें
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